Thursday, September 30, 2010

और डूब के जाना है ....

मासूम  मोहब्बत  का  बस इतना  फ़साना  है 
कागज़  की  हवेली  है  बारिश  का  ज़माना  है .

क्या  शर्त-ए-मोहब्बत  है  क्या  शर्त -ए - ज़माना  है 
आवाज़  भी  ज़ख़्मी  है  और  गीत  भी  गाना  है .

उस  पर  उतरने  की  उम्मीद  बहुत  कम  है 
कश्ती  भी  पुरानी   है  और  तूफान  को  भी  आना  है .

समझे  या  न  समझे  वो  अंदाज़  मोहब्बत  के 
एक  शख्स  को  आँखों  से  दिल  का  सारा  दर्द  सुनाना है .

भोली  सी  अदा  कोई  फिर  इश्क  की  जिद  पर  है 
फिर  आग  का  दरिया  है  और  डूब  के  जाना  है .

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