Wednesday, February 23, 2011

आखिर ऐसा क्यों होता है....

क्यों होता है ऐसा..
जिसको हम दिलो जान से चाहते हैं उसको ये समझा नहीं पाते..
जिसके लिए हम हर पल तड़पते हैं उससे ही बात नहीं कर पाते..
जिसे  खोने का डर हमे हर  पल सताता है उसको  ही छोड़ बैठते हैं...
जिसकी हमारी ज़िन्दगी में सबसे ज्यादा ज़रूरत है वो ही सबसे दूर है..
जिसके एहसास से ही ख़ुशी मिल जाये क्यों उसको महसूस करने का हक हमे  नहीं होता..

ऐसा क्यों  होता  है..
वो सिर्फ हमसे नाराज़ होते हैं..
हमे छोड़ जाते हैं..
हमे तड़पाते  हैं...
और आखिर..
हमसे ही प्यार नहीं करते..
हमसे ऐसी क्या खता हो जाती है...

आखिर ऐसा क्यों होता है....

अब तो कुछ कहो ना..

जानती हूँ  थक गए हो ,
उम्र  के  लम्बे  सफ़र  से ,
सांप  से  डसते शहर  से ,
आस  से  और  आंसुओं  से ,
भीड़  के  गहरे  भंवर  से .
वक़्त  फिरता  है  सुनो ,
इतना  डरो  ना . 

अब तो कुछ  कहो  ना  ..

अगर अब भी ना कहा कुछ तो ,
ये प्यारा सा रिश्ता टूट जायेगा.
हमारा साथ छूट जायेगा...
ये मासूम सा दिल टूट जायेगा..
ये प्यार नसीब से मिलता है सुनो..
इतना डरो ना..
अब तो कुछ कहो ना..