Tuesday, February 22, 2011

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Hum Bewafa hargiz na they

VO HUE NA HAMARE...

FOR U...

I MISS YOU...


कुछ इस तरह...

कुछ इस तरह था उनका अलविदा कहने का अंदाज़...

कि सुना भी कुछ नहीं और कहा भी कुछ नहीं...

कुछ यू बर्बाद हुए उनकी मोहब्बत में..

कि लुटा भी कुछ नहीं और बचा भी कुछ नहीं...

हम तेरे शहर में ए हैं मुसाफिर की तरह.//

आज की रात मेरा दर्द-ए-मोहब्बत सुन ले..

कंपकंपाते हुए होंटों की शिकायत सुन ले.

आज इज़हार-ए-ख़यालात का मौका दे  दे....

हम तेरे शहर में ए हैं मुसाफिर की तरह..

सिर्फ एक बार मुलाक़ात का मौका दे दे...

दर्द-ए- इश्क..

मुझे दर्द-ए- इश्क का हर एक  मज़ा मालूम है..

और दर्द -ए-इश्क की दगा क्या इन्तहां मालूम है...

ज़िन्दगी भर मुस्कुराने  की दुआ मत दीजिये..

मुझे  पल भर मुस्कुराने की सजा मालूम है...



आके मिल जा!!!

चंद कलियों के मुस्कुराने से ...
ज़ख्म जागे कई पुराने से..
दो कदम मै तो चल नहीं सकता.. 
तू ही आके मिल जा किसी बहाने से...