Tuesday, February 22, 2011
कुछ इस तरह...
कुछ इस तरह था उनका अलविदा कहने का अंदाज़...
कि सुना भी कुछ नहीं और कहा भी कुछ नहीं...
कुछ यू बर्बाद हुए उनकी मोहब्बत में..
कि लुटा भी कुछ नहीं और बचा भी कुछ नहीं...
हम तेरे शहर में ए हैं मुसाफिर की तरह.//
आज की रात मेरा दर्द-ए-मोहब्बत सुन ले..
कंपकंपाते हुए होंटों की शिकायत सुन ले.
आज इज़हार-ए-ख़यालात का मौका दे दे....
हम तेरे शहर में ए हैं मुसाफिर की तरह..
सिर्फ एक बार मुलाक़ात का मौका दे दे...
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